विद्यालय में मेरा पहला दिन पर निबंध | Pathshala ka Pehla din Nibandh

Pathshala ka Pehla din Nibandh: अगर आप विद्यालय में मेरा पहला दिन पर निबंध लिखना चाहते है तो इस आर्टिकल के माध्यम से आसानी से निबंध लिख सकते है |

विद्यालय में मेरा पहला दिन पर निबंध Pathshala ka Pehla din Nibandh

Pathshala ka Pehla din Nibandh 10 line | मेरी पाठशाला निबंध हिंदी 50 लाइन


भूमिका -कभी-कभी ऐसा होता है-जब कहीं पर किसी विशेष अवसर कहता है। इस प्रकार का अफरीकी बहन न होता है, तो कभी बहुत ही खड़ा और कड़ होता है। फिर भी ये सभी प्रकार के अनुभव जीवन कभी सजीव हो उठते हैं। यों तो औरों के समान मुझे क जीवन के कुछ ऐसे अनुभव हैं, जिन्हें हम भूलाए नहीं भूलपाते हैं। इस प्रकार के अनुभवों में मेरा एक अनुभव विद्यालय में पहले दिन का है।

विद्यालय में मेरा पहले दिन का अनुभव, उस समय का है, जब मैंन स्थानीय विद्यालय से आठवीं परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। मेरे परीक्षा-परिणाम बहुत ही अच्छा था। मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था। इसलिए मुझे शहर के अच्छे और प्रसिद्ध विद्यालयों में प्रवेश लेने का सही और उपयुक्त अवसर-आधार प्राप्त हुआ था।

मेरे परिवार सहित पास-पड़ोस के सभी शुभचिन्तकों ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए सबसे अच्छे विद्यालय में प्रवेश लेने के लिए अपने-अपने सुझाव-सलाह दिए। सबके सुझाव और परामर्श से मेरे पूज्य पिता जी ने शहर के सुप्रसिद्ध विद्यालय । ‘सर्वोदय विद्यालय’ में प्रवेश के लिए प्रवेश पत्र भर कर के जमा करवा दिए । निश्चित अवधि पर प्रवेश-सूची निकाली गयी। पहलसूची में ही मेरा नाम सर्वप्रथम था।

इसे सुनकर में बहुत खुश हुआ। शुल्क, सुरक्षा-निधि आदि जमा करने के बाद मैं अपने पठन-पाठन के लिए निश्चित समय पर विद्यालय के लिए घर से चल पड़ा। मैं निर्धारित समय से पाँच मिनट पहले ही विद्यालय पहुँच गया। अपनी कक्षा की तलाश करने में मुझे विशेष कठिनाई नहीं हई। शीघ्र ही मुझे अपनी कक्षा और अपनी बैठने की सीट भी मिल गयी।

मैं कक्षा को ध्यान से देख ही रहा था कि तभी प्रार्थना की घण्टी बजने लगी। मैं अन्य छात्रों के साथ प्रार्थना के लिए कक्षाओं के सामने विद्यालय के बीचो-बीच बहुत बड़े मैदान में पहुँच गया। पाँच मिनट तक सभी के साथ मैंने भी प्रर्थना की। इसके बाद पी.टी. टीचर ने सावधान कराते हुए कुछ हल्के सा व्यायाम करवा कर सबको पंक्तिबद्ध होते हुए अपनी-अपनी कक्षा में जाने का आदेश दिया। सभी छात्रों के समान मैं अपनी कक्षा में आकर बैठ गया।

चूँकि मैं उस विद्यालय का नया छात्र था। इसलिए मैं स्वयं को कुछ अजनबी-सा अनुभव कर रहा था। उधर दूसरे छात्र भी मुझे कुछ अजीब ढंग से देख रहे थे। इसके बाद घण्टी बजी। घण्टी बजते ही सभी छात्र अपने-अपने स्थान पर शान्तिपूर्वक बैठ गए।थोड़ी देर कक्षाध्यापक ने हाजिरी ली। उन्होंने मुझे बड़े ध्यान से देखा। देखते ही प्रश्नों की बौछार मुझ पर कर दी।

एक-एक करके उन्होंने प्रश्न किया। क्या नाम है ? पिता का क्या नाम है ? किस विद्यालय से आए हो। कहाँ रहते हो ? आदि। मैंने एक-एक कर सभी प्रश्नों के उत्तर बड़े ही संतोषजनक रूप से दिया। इससे वे मुझ से बहुत ही संतुष्ट हुए। उनके चले जाने पर कक्षा-आरंभ होने की घण्टी बजी। पहला पीरियड आरम्भ हुआ। यह पीरियड गणित का था। उन्होंने एक प्रश्न समझाया। उसके आधार मुझे दूसरा प्रश्न हल करने के लिए कहा।

मैंने यथाशीघ्र उसे हल कर दिया। सभी छात्रों सहित वह अध्यापक महोदय भी मेरा मुँह देखते रह गए। उन्होंने मेरा नाम, पिता का नाम, पूर्व विद्यालय का नाम, परीक्षा-परिणाम आदि के विषय प्रश्न किए। मैंने सभी प्रश्नों के समुचित उत्तर दिए। इससे वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मुझे शावासी दी। मैं निहाल हो गया अपना कार्य करने लगा। वह पीरियड समाप्त हो गया। इसके बाद दूसरे पीरियड की घण्टी बजी। यह पीरियड इंगलिश ग्रामः का ने आते ही ग्रामर के विषय में खास-खास बातें बतलाई। इसके बाद उन्होंने डाइरेक्ट इनडाइरेक्ट पड़ाना आरंभ किया।

पढाते-समझाते हए उन्होंने प्रश्न किया। परसन किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार का होता है। इसे सुनकर सारी कक्षा चुप हो गई। सभी एक दूसरे का मुँह देखने लगे। तभी मैंने तवाक से उत्तर देने के लिए हाव ऊपर उठाया। उस अध्यापक अनुमति से मैंने सटीक उत्तर दिए। उन्होंने मुझ से आगे पूछा-प्रत्येक परसन के शब्द कौन-कौन होते हैं ? बतलाओगे, मैंन हाँ करते हुए सभी परसनों के शब्दों को बतला दिया। वे मेरे उत्तर से बहुत सुन्तष्ट हुए। कक्षा के सभी छात्र फिर एक बार मुझे चकित होकर देखते रह गए।

इसके बाद घण्टी बजी। अब संस्कृत का पीरियड आरंभ हुआ। कक्षा में भारतीय-संस्कृति-सम्भ्यता के प्रतीक संस्कृत अध्यापक आए। उन्होंने बड़े ध्यान से सबको देखा। फिर सस्वर संस्कृत के श्लोकों को पढ़ाया। सभी छात्र-मंत्रमुग्ध होकर अपना ध्यान लगाए। इसके बाद विज्ञान का पीरियड लगा। विज्ञान अध्यापक ने बड़ी गंभीरता और तल्लीनता से ‘प्रकाश और ध्वनि’ नामक विज्ञान का अध्याय पढ़ाया।

उन्होंने बोर्ड पर अपेक्षित रूप से इस विषय को समझाया। सभ छात्रों ने बड़ी सावधानी के साथ इस ओर ध्यान देकर अपना काम किया। इसके बाद यह भी पीरियड समाप्त को गया। अब जलपान की घण्टी बजी। सभी छात्रों ने जलपान की अपनी-अपनी अलग-अलग व्यवस्था की थी। मैंने भी अपना लंच बाक्स खोला। अपने पास बैठे हुए छात्रों को लंच के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने भी मुझे आमंत्रित किया।

इस प्रकार मिल जुलकर लंच करके हम परस्पर मित्र बन गए । जलपान समाप्ति की घण्टी बजने के बाद हिन्दी का पीरियड लगा। कक्षा में हिन्दी अध्यापक वे प्रवेश किया। वे बहुत सौभ्य, सुशील और आकर्षक व्यक्तित्व के थे। उन्हें देखकर मैं गद्गद् हो गया। उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान विरचित कविता ‘झाँसी की रानी’ कविता पढ़ाने से पूर्व प्रश्न किया। कल मैंने श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन-परिचय याद करके

आने के लिए कहा था। सभी को याद है ? किसी छात्र ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। उन्होंने पूछा-श्रीमती सुभद्रा कुमारी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ? मैंने उत्तर देने के लिए अपना हाथ ऊपर उठाया, उन्होंने उत्तर देने के लिए स्वीकृति दे दी। स्वीकृति पाकर मैंने उत्तर दिया- ‘श्रीमती सुभद्रा कुमारी का जन्म उत्तर-प्रदेश के निहालपुर गाँव में सन् 1904 ई. में हुआ था। उन्होंने प्रशंसा करते हुए कहा- ‘देखा, केवल एक ही छात्र याद करके आया है। इसे सुनकर सभी छात्रों ने कहा- ‘सर ! ‘होनहार विरवान के होत चिकने पात’ । उन्होंने मुझे शाबासी दी।

इससे छात्र प्रभावित हो गए। मैंने वह दिन आज एक अपनी यादों में संजोकर रखा है। इसके बाद साइन्स के प्रेक्टिकल की घण्टी बजी। हम सब प्रयोगशाला में गए। वहाँ काफी देर तक विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक उपकरणों को देखे-समझे। इसके बाद एक-एक करके सभी पीरियड समाप्त हो गए। मैं कुछ अपने उन नए-नए मित्रों के साथ कक्षा से बाहर निकलकर घर लौट आया।

यों तो इस विद्यालय में पढ़ते हुए मुझे दो वर्ष हो गए हैं, किन्तु इस विद्यालय में मेरा पहला दिन एक अमिट यादगार बन गया है। सचमुच में मेरा यह पहला दिन मेरे लिए बड़ा ही अद्भुत और रोचक अनुभवों का रहा।


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